गैणा डांड स्थित भुवनेश्वरी माता मंदिर में है ग्रामीणों की अटूट आस्था।
गैणा डांड स्थित भुवनेश्वरी माता मंदिर में श्रद्धालुओं की अटूट आस्था जुड़ी हुई है।

27 सितम्बर 2025। यमकेश्वर। सुदीप कपरूवाण।
यमकेश्वर विकासखंड की सबसे ऊंची चोटियों में से एक चोटी गैणा डांड में विराजमान है माता भुवनेश्वरी
यमकेश्वर तहसील के फल्दाकोट ग्राम पंचायत अंतर्गत कंडवाल गांव के समीप गैणा डांड स्थित भुवनेश्वरी माता मंदिर को शरदीय नवरात्रों में पूजा पाठ के लिए सजाया गया है।

शरदीय नवरात्रों में भुवनेश्वरी माता मंदिर में प्रतिदिन सुबह शाम स्थानीय वाद्य यंत्र “रौंटी” बजाकर आरती की जाती है। शरदीय नवरात्रों में प्रतिपदा से दशहरे तक दस दिनों तक मंदिर के पुजारियों द्वारा मंदिर में पूजा पाठ किया जाता है।

प्रतिप्रदा तिथि को भुवनेश्वरी माता मंदिर में पुजारियों द्वारा जौ की हरियाली बोकर कलश की स्थापना की जाती है।
दशहरे के दिन हवन के बाद हरियाली काटकर मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं में बांटी जाती है।

भुवनेश्वरी माता यमकेश्वर क्षेत्र की अधिष्ठात्री कुल देवी हैं। मूलतः नीलकंठ के निकट भौन गांव में स्थित भुवनेश्वरी माता का मंदिर है।
मान्यता है कि पयाल वंश के कुछ परिवारों ने लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व इस स्थान पर माता का पिंडी रूप में पूजा पाठ शुरू किया था। कुछ समय बाद इस स्थान पर मंदिर की स्थापना की गई। वर्तमान समय में मंदिर में माता की मूर्ति स्थापित है।

अश्विन मास के अष्टमी तिथि पर प्रत्येक वर्ष क्रमानुसार फलदाकोट तल्ला,फलदाकोट मल्ला और कुकरेतीधार के ग्रामीणों द्वारा गांव से मंदिर तक ढोल दमों के साथ पद यात्रा निकाली जाती है। मंदिर पहुंचने पर मंडाण लगाया जाता है।

गैणा डांड स्थित भुवनेश्वरी माता मंदिर के पुजारी जगदीश प्रसाद कपरूवाण और अनिल जुगलान ने बताया कि प्रत्येक वर्ष अश्विन मास के नवरात्रों में मंदिर में धूम-धाम से पूजा पाठ किया जाता है। प्रवासी ग्रामीण शरदीय नवरात्रों पर भुवनेश्वरी मंदिर जाने को लेकर उत्सुक रहते हैं।

गैणा डांड स्थित गणेश मंदिर में ग्रामीणों की रही हैं श्रद्धा और विश्वास के साथ लोक मान्यताएं।
“गण देवता” नाम से क्षेत्र पाल देवता के रूप में होता है विशेष पूजन।

यमकेश्वर विकासखंड में एकमात्र गणेश जी का मंदिर गैणा डांड में स्थित है। स्थानीय ग्रामीणों ने बताया कि मान्यता है कि एक बार कुकरेती धार के 1 व्यक्ति ने गणेश जी से मन्नत पूरी होने पर भेंट चढ़ाने का संकल्प लिया था लेकिन किन्हीं कारणों से वह भेंट चढ़ाना भूल गए थे। इस व्यक्ति के 6 माह का नवजात शिशु आश्चर्यजनक ढंग से शाम के समय अचानक से घर से गायब हो गया। रात भर ग्रामीण नवजात शिशु को गांव और आसपास खेतों में खोजते रहे।

सुबह जब व्यक्ति को गणेश जी से मांगी मन्नत और भेंट चढ़ाने की बात याद आई तो उन्होंने भगवान गणेश से माफी मांगी और भेंट न चढ़ाने की भूल स्वीकारी। आश्चर्य से कुछ देर बाद एक बुजुर्ग बहरी महिला को नवजात बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी।

नवजात शिशु घर से कुछ दूरी पर कंडाली की झाड़ियों में लेटा मिला जो स्वस्थ अवस्था में था। इसके बाद व्यक्ति ने ग्रामीणों संग गणेश जी के स्थान में जाकर माफी मांगी और भेंट चढ़ाई। अनेकों बार ऐसे ही अदभुद चमत्कार होने पर क्षेत्र के लोगों का विश्वास और आस्था बढ़ती गई।

लोगों की मान्यता है कि करीब डेढ़ सौ वर्ष पूर्व गणेश मंदिर के पीछे एक कुंवा हुआ करता था जिसमें बारह माह पानी निकलता था। कुंवे के पानी को गंगा जल समान पवित्र माना जाता था। आसपास के ग्रामीण कुंवे के जल को ही गंगा जल की तरह उपयोग करते थे। माना जाता था कि जिस प्रकार सालभर में 2 बार गंगा नदी का जल रंग बदलता है वैसे ही कुंवे के पानी का भी रंग बदलता था।

स्थानीय मान्यताओं में हरिद्वार स्थित हरकी पैड़ी स्थित गंगा जी से कुंवे के जल की मान्यताओं को जोड़ा जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि कुंवे के समीप घटी दुर्घटनाओं के बाद कुंवे को पत्थरों से ढक कर बंद कर दिया गया था। लेकिन अभी भी यहां कुंवे के निशान हैं।

सबसे ऊंची चोटी पर पानी निकलना भी लोगों के लिए आश्चर्य की बात थी लेकिन भगवान की आस्था और विश्वास के साथ चमत्कार होते रहे। लोग शुभ अवसरों पर गणेश जी का स्मरण कर गेहूं भूजकर पड़ोसियों में प्रसाद रूप में बांटते थे।
शनिवार को ग्रामीण वेद प्रकाश जोशी और भगतराम कुकरेती ने गणेश मंदिर प्रांगण में रुद्राक्ष का पौधा लगाया।

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